मध्य प्रदेश के सतना ज़िले में मैहर शहर में माँ शारदा का एकमात्र मंदिर शारदा देवी मंदिर (Sharda Devi Temple) स्थित है। शारदा देवी मंदिर माता के 52 शक्तिपीठों (Shaktipeeth) में से एक माना जाता है। त्रिकुटा पहाड़ी पर माँ दुर्गा के शारदीय रूप देवी माँ शारदा (Maa Sharda) का मंदिर मैहर शहर की लगभग 600 फुट की ऊँचाई पर विराजित है यह मंदिर सम्पूर्व विश्व मे ‘मैहर देवी माता'(Meihar Devi Mata) के नाम से भी विख्यात है।
शारदा देवी मंदिर मे जाने के लिए 1063 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। इस मंदिर का निर्माण गोंड शासकों द्वारा किया गया था। इतिहास मे महावीर आल्हा-उदल (Alha -Udal) को वरदान देने वाली माँ शारदा को पूरे भारत वर्ष मे मैहर की शारदा माता के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ दूर दूर से श्रद्धालु दर्शन करने हेतु लाखो की संख्यां मे पहुंचते हैं।
पौराणिक कथा Mythology
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान ब्रह्म देव (Brahma)के पुत्र राजा दक्ष की पुत्री भगवान् शिव को अपना जीवन साथी बनाना चाहती थी किन्तु यह बात राजा दक्ष को मंजूर नहीं थी। किन्तु हठपूर्वक अपने पिता के विरुद्ध जाकर माता सती ने शिवजी(Shivji) के साथ विवाह कर लिया। कुछ समय पश्चात राजा दक्ष ने ‘बृहस्पति सर्व’ नमक एक यज्ञ का आयोजन किया जिसमे सम्पूर्ण सृष्टि (universe)के देवी देवताओं को आमंत्रित किया गया परन्तु अहम् वश होकर भगवान महादेव को आमंत्रण नहीं भेजा। माता सती भगवान महादेव के मना करने के बावजूद अपने पिता(father) के घर यज्ञ मे चली गयी। यज्ञ-स्थल पर पहुंचकर उन्होने अपने पिता से महादेव को आमंत्रण न भेजने का कारण पूछा जिसके जवाब मे राजा दक्ष (king Daksh)ने माता सती के समक्ष महादेव का अपमान किया।
इस अपमान से आहत हुई माता सती(Maa Sati) ने यज्ञ की पवित्र अग्नि मे अपना देह भस्म कर दिया। भगवान शिव को जब इस बात का पता चला तो वह क्रोधित(angry) और शोकाकुल होकर माता सती के पार्थिव शरीर को कंधे मे उठाकर तांडव करने लगे। जिससे सृष्टि का नाश होने लगा। सृष्टि को भगवान् महादेव(Lord S के कोप से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र (Sudarshan Chakra) की सहायता से माता सती के अंग को बावन भागो मे विभाजित किया। जहाँ जहाँ माता सती के शव के अंग और आभूषण(jewelry) गिरे वहाँ माता के शक्तिपीठ अस्तित्व मे आए। माँ सती का आभूषण हार मध्यप्रदेश(Madhya Pradesh) के इस स्थान पर गिरा जिस कारण इस जगह का नाम मैहर पड़ा। मैहर का शाब्दिक अर्थ है -माँ का हार।
दन्तकथा Legend
एक दंतकथा (legend)के अनुसार लगभग 200 वर्ष पूर्व मैहर में महाराज दुर्जन सिंह जुदेव का राज्य था। उनके राज्य मे एक ग्वाला अपने गौ चराने जंगल जाता था। जंगल के अंदर दिन रात काफी अँधेरा रहता था। एक दिन ग्वाले ने देखा कि उसकी गाइयों (cows)के साथ एक सुनहरी गाय भी घास चार रही थी और शाम होते ही कही चली गई। दूसरे दिन भी ऐसा ही हुआ तो ग्वाले ने सोचा कि शाम को जब गाय वापिस जाएगी तो वह गाय का पीछा करेगा। शाम को गाय का पीछा ग्वाले ने किया थो देखा कि गाय पहाड़ी की चोटी पर एक गुफा के अंदर प्रवेश(entry) कर गयी और गुफा का द्वार बंद हो गया। वह द्वार के सम्मुख ही बैठ गया। बहुत देर के बाद गुफा के अंदर से एक बूढ़ी माँ बाहर आई तब भूख से व्याकुल ग्वाले ने बूढ़ी माँ से कहा कि मै आपकी गाय को चराता हूँ इसलिए मुझे कुछ आहार दे दीजिए। बूढ़ी माता(Mata) ने लकड़ी के सूप में जौ के दाने दिए वहां से निकलने के पश्चात (After) जब ग्वाले ने अपनी गठरी खोली तो पाया कि उसमे जौ के दाने नहीं थे बल्कि हीरे जवाहरात थे।
ग्वाला यह बात बताने दूसरे दिन राजा(king) के सम्मुख गया ग्वाले ने अपनी बात राजा को बताई। राजा ने वहां जाने का ऐलान किया और सोने चले गए रात मे राजा को एक सपना आया। सपने मे माँ शारदा ने उन्हे अपने दर्शन दिए और राजा को उसी स्थान पर अपनी मूर्ति के निर्माण का आदेश दिया। राजा ने वहां मंदिर (temple)का निर्माण कराया।
आल्हा-उदल से सम्बन्ध Relationship with Alha-Udal
इसके सन्दर्भ प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के में एक और दन्तकथा (legend)यह भी प्रचलित है कि दो वीर भाई उदल और आल्हा, वे भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे। उन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था,इन्हीं दोनों भाइयों ने सबसे पूर्व शारदा देवी के जंगलों के बीच स्थित इस मंदिर(temple) की खोज की थी। इस मंदिर में आल्हा ने बारह सालों तक तपस्या की थी और देवी को प्रसन्न किया था। उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद माता ने दिया था। यह भी मानना है की दोनों भाइयों ने आस्था से अपनी जीभ शारदा को अर्पित (dedicated)कर दी थी। आल्हा माता को ‘शारदा माई’ पुकारा करता था तभी से यह मंदिर भी ‘माता शारदा माई’ के नाम से विख्यात हो गया।
आज भी ये माना जाता है कि माता शारदा (Mata Sharda)के दर्शन करने हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं। मंदिर के पीछे की तरफ पहाड़ों के नीचे एक तालाब निर्मित है इस तालाब को ‘आल्हा तालाब’ कहा जाता है। तालाब से लगभग दो किलोमीटर (Kilometre)और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है कहा जाता है कि आल्हा और उदल इसी अखाड़े मे कुश्ती लड़ा करते थे।