इस विशेष विधि से होती है गणना
कुंभ की गणना एक विशेष विधि से शुरू होती है जिसमे की गुरु का अत्यंत महत्व होता है। नियमानुसार बतया जाये तो गुरु एक राशि में लगभग एक वर्ष रहता है। यानि की 12 राशियों में भ्रमण करने में उसे 12 वर्ष की अवधि लगती है। यही सबसे बड़ा कारण है की हर प्रत्येक 12 साल बाद ही कुंभ उसी जगह पर वापस आ जाता है और प्रत्येक 12 साल में कुंभ आयोजन स्थल दोहराया जाता है।
इसी तरह गणना के अनुसार कुंभ के लिए निर्धारित चार जगहों पर अलग- अलग जगह पर हर तीसरे वर्ष कुंभ की अयोजना करी जाती है। और कुंभ के लिए निर्धारित चारों जगहों में प्रयाग के कुंभ का एक विशेष महत्व होता है। हर 144 वर्ष बाद यहां महाकुंभ का आयोजन होता है क्योकि देवताओं का बारहवां वर्ष पृथ्वी लोक पर 144 वर्ष के बाद आता है। कुंभ एक बहुत महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमे की करोड़ो अरबो श्रद्धालु इसके नियत स्थलों पर जैसे- हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में स्नान करने जाते है। इनमें से प्रत्येक स्थान पर प्रति बारहवें वर्ष और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है। इससे पूर्व 2013 का कुम्भ प्रयाग में हुआ था। पूर्ण कुम्भ के छ: वर्ष बाद अर्ध कुंभ होता है।